साहित्य मंच पर नवपथ काव्य पुस्तक का हुआ विमोचन

संस्कारों और समाज को गढ़ने की भूमिका अदा करते हैं साहितकर : कुशलेंद श्रीवास्तव

गाडरवारा

: विगत दिनों साहित्यक संस्था चेतना के तत्वाधान में स्थानीय पीजी कालेज के आडीटोरियम में वरिष्ठ साहित्यकार श्रीराम साहू एवं अखिलेश साहू की साझा काव्य कृति “नवपथ” का विमोचन वरिष्ठ साहित्यकार कुशलेन्द्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता में, पूर्व विधायक श्रीमती साधना स्थापक के मुख्य आतिथ्य, महंत बालकदास जी के सारस्वत आतिथ्य में एवं डा. जवाहर शुक्ला, डॉ अनिल पटैल के विशिष्ट आतिथ्य में आयोजित किया गया । कार्यक्रम का शुभारंभ मॉ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यापर्ण एवं दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ । सरस्वती वंदना कु प्रज्ञा साहू एवं कु अंशु कौरव ने प्रस्तुत दी।

मंचासीन अतिथियों का स्वागत माल्यार्पण, शाल श्रीफल से किया गया । करतल ध्वनि के बीच पिता-पुत्र की प्रथम संयुक्त कृति नवपथ का विमोचन मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया । इस अवसर पर कृति के सहरचनाकार अखिलेश साहू ने अपने सृजन के बारे में बताते हुए कहा कि उनकी रचनाएं सामाजिक कुरितियों के खिलाफ होती हैं, जिन्हें वे बुन्देलखंडी लय पर प्रस्तुत करते हैं वहीं पिताजी श्रीराम साहू की कवितायें समाज के हितार्थ होती हैं उन्होने वैवाहिक अभिनंदन पत्र भी सृजित किए हें जो इस संग्रह में हैं ।

डा. जवाहर शुक्ल ने कविता सृजन को परिभिषित करते हुए कहा कि कविता भावों की अभिव्यक्ति है और सच यह भी है कि कविता जीविकोपार्जन के भावों के साथ नहीं लिखी जा सकती । महंत बालकदास जी ने अपने आशीर्षवचन देते हुए कहा कि हमारा क्षेत्र धार्मिक क्षेत्र है यहां के साहित्यकार भी इससे प्रभावित होते हें यही कारण है कि यहां के साहित्य में धार्मिक पुट रहता है । पूर्व विधायक श्रीमती साधना स्थापक ने कहा कि इस क्षेत्र में साहित्यक गतिविधियां निरंतर होती रहती हैं जिसके कारण नवोदित साहित्यक प्रतिभाएं उभर कर आती हैं । उन्होने साहित्य की विशेषताएं बताते हुए कहा कि नयन शब्द को कई तरह से व्यक्त किया जा सकता है,

इस तरह केलन में कुडंल में जैसे पंक्तियां हिन्दी व्याकरण की बहुमूल्य पंकिया बन चुकी हैं । साहित्य में पर्यायाची शब्दों का अपना महत्व होता है यही कारण है कि साहित्य के प्रति आम आदमियों का रूझान बना हुआ है । कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार कुशलेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि आज समाज संक्रमणकाल के दौर से गुजर रहा है, हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार लुप्त हेते जा रहे हैं ऐसे समय में साहित्यकारों की भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है ।

समाज को आज वैचारिक क्रांति की आवश्कता है, जो साहित्य से ही संभव है । हमारे सामने अपनी संस्कृति को बचाने की चुनौती भी है । विमोचन के अवसर पर चेतना सहित अन्य साहित्यक संस्थाओं द्वारा कृतिकार का सम्मान शाल श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह देकर किया । कार्यक्रम का सफल संचालन विजय बेषर्म ने किया और आभार प्रदर्षन अखिलेष साहू ने किया । कार्यक्रम में जिले के एवं अन्य शहरों के साहित्यकार भी सम्मलित हुए ।

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